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Thursday, June 8, 2023

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Darkaar Hai Jahan Ko Hidaayat Masih Ki | Kalma-E-Haq

Darkaar Hai Jahan Ko Hidaayat Masih Ki

कलमा-ए-हक़ का
जब से मिला आसरा मुझे 
उस दिन से कुछ नहीं रहा
खौफ़-ए-तज़ाद मुझे 
हुस्न-ए-मसीह मेरी, निगाहों में बस गया 
फिर ज़च सका न हुस्न 
किसी गैर का मुझे 
इशरत मैं उठके दोस्त के दर से न जाऊँगा 
चाहे मिले, मिले न मिले, कुछ सिला मुझे 
दरकार है जहाँ को, हिदायत मसीह की -2 
हर शख्स को है आज, ज़रूरत मसीह की 
दरकार है जहाँ को, हिदायत मसीह की -2
कलमा-ए-हक़ का ये फ़रमान मान तू 
उसकी क़ुरबानी पे ला ईमान तू -2 
उसको अपने दिल में कर ले दिल-नशीं
ज़िन्दगी हो जाएगी तेरी हसीं 
सारे पापों से मुआफ़ी पाएगा 
रूह-ए-हक़ से, दिल तेरा भर जाएगा 
भर जाएगा, भर जाएगा 
रूह-ए-हक़ से, दिल तेरा भर जाएगा 
इसीलिए कहता हूँ…
दरकार है जहाँ को, हिदायत मसीह की -2 
जो खुदा पर, कामिल ईमान लाए हैं 
वो मोहब्बत का सबब पढ़ आए हैं 
और हलीमी मेहरबानी सीख कर 
गालियों के बदले, बरक़त लाए हैं 
जो बुरा करता है उससे कर भला 
अपने दिल को सुलह का हमीं बना -2 
देखता है रास्तबाज़ों को खुदा 
और सदा सुनता है उनकी हर दुआ 
पर शरीरों का मुख़ालिफ़ है खुदा 
हश्र के दिन उनका हिस्सा है सज़ा 
है सज़ा, है सज़ा 
हश्र के दिन उनका हिस्सा है सज़ा 
इसीलिए कहता हूँ…
दरकार है जहाँ को, हिदायत मसीह की -2 
प्यार करना, मेहरबानी और तरस 
सब्र से पाओगे तुम, उसका दरस
जिस तरह बख्शी तुम्हारी सब खता 
दूसरों के भी खता को बख्श दें 
मुत्तहिद होकर मोहब्बत में सभी 
इत्तिहाद और प्यार में बंध कर चलें 
बंध कर चलें, बंध कर चलें 
इत्तिहाद और प्यार में बंध कर चलें 
इसीलिए कहता हूँ…
दरकार है जहाँ को, हिदायत मसीह की -2 
हुक्म तो अफ़ज़ल (गीतकार) दिए इंजील ने 
कर मोहब्बत तू खुदा-ए-पाक से 
अपनी अक्ल और रूह से और जान से 
हर अम्ल से अपने और अरमान से 
और जैसे खुद को तू करता है प्यार 
ऐसे कर अपने पड़ोसी से भी प्यार 
ऐसे कहलाएगा फ़रजंद-ए-खुदा 
और खुदा बख्शेगा आला मर्तबा
आला मर्तबा, आला मर्तबा
साथ उसके तुम रहोगे यूँ सदा 
इसीलिए कहता हूँ…
दरकार है जहाँ को, हिदायत मसीह की -2 
जिसका भी होगा मसीहा पर यकीं
अपने ईमान को बनाएगा हसीं 
जब मसीहा होगा उसके दिल-नशीं 
अर्श का खुद को बना लेगा मकीं 
फिर उभरती ही रहेगी ज़िन्दगी 
शुक्र से रब के भरेगी ज़िन्दगी 
मुर्दा हालत में न होगी ज़िन्दगी 
पाएगी पापों से मुआफ़ी ज़िन्दगी 
मुआफ़ी ज़िन्दगी, मुआफ़ी ज़िन्दगी 
पाएगी पापों से मुआफ़ी ज़िन्दगी 
इसीलिए कहता हूँ…
दरकार है जहाँ को, हिदायत मसीह की -2 

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