Kitna Madhurtam Hai Prabhu
कितना मधुरतम है प्रभु तेरे
आँगन में वास करना (कितना) -2
आँगन में तेरे वास करना
मैं निरन्तर चाहता रहूँ
तन और मन से ईश्वर को
निरंतर पुकारता रहूँ -2
परमेश्वर का मैं मन्दिर हूँ
और इसलिए आनन्दित हूँ
स्तुति रूपी बलिदान मसीह के द्वारा
निरंतर चढ़ाता रहूँ -2
सैनाओं के यहोवा तेरे
निवास स्थान क्या ही प्रिय है -2
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